वांछित मन्त्र चुनें

य ईशि॑रे॒ भुव॑नस्य॒ प्रचे॑तसो॒ विश्व॑स्य स्था॒तुर्जग॑तश्च॒ मन्त॑वः । ते न॑: कृ॒तादकृ॑ता॒देन॑स॒स्पर्य॒द्या दे॑वासः पिपृता स्व॒स्तये॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ya īśire bhuvanasya pracetaso viśvasya sthātur jagataś ca mantavaḥ | te naḥ kṛtād akṛtād enasas pary adyā devāsaḥ pipṛtā svastaye ||

पद पाठ

ये । ईशि॑रे । भुव॑नस्य । प्रऽचे॑तसः । विश्व॑स्य । स्था॒तुः । जग॑तः । च॒ । मन्त॑वः । ते । नः॒ । कृ॒तात् । अकृ॑तात् एन॑सः । परि॑ । अ॒द्य । दे॒वा॒सः॒ । पि॒पृ॒त॒ । स्व॒स्तये॑ ॥ १०.६३.८

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:63» मन्त्र:8 | अष्टक:8» अध्याय:2» वर्ग:4» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:5» मन्त्र:8


बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (प्रचेतसः) प्रकृष्ट सावधान (मन्तवः) मननशील (विश्वस्य भुवनस्य) सब उत्पन्न हुए (स्थातुः-जगतः-च) स्थावर और जङ्गम तथा उन सम्बन्धी ज्ञान का (ईशिरे) स्वामित्व करते हैं, उनके ज्ञान में समर्थ हैं अथवा परमात्मा उनके ज्ञान में समर्थ है (ते देवासः) वे विद्वान् या परमात्मा (नः) हमें (कृतात्-अकृतात्-एनसः-अद्य पिपृत) किये या किये जानेवाले सङ्कल्पमय पाप से आज अथवा इस जीवन में हमारी रक्षा करें (स्वस्तये) कल्याण के लिए ॥८॥
भावार्थभाषाः - मननशील सावधान विद्वान् अथवा परमात्मा सब उत्पन्न हुए स्थावर जङ्गम के जाननेवाले होते हैं। वे हमें वर्तमान और भविष्य में होनेवाले पापों से हमारे कल्याण के लिए हमें सावधान किया करते हैं। उनके उपदेश और सङ्गति में जीवन बिताना चाहिए ॥८॥